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अब हिमालयन शहद ब्रांड नाम के साथ मिलेगा बाजार में उत्तराखंड का शहद

आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनी डाबर इंडिया : यहां गंगासेरी में पायलट प्रोजेक्ट शुरू

पिथौरागढ़ – देश के नामी आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनी डाबर इंडिया ने उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की गंगासेरी ग्राम पंचायत के छह गांवों को हनी कलस्टर के रूप में विकसित करने की योजना पर कार्य आरंभ कर दिया है। डाबर इंडिया के सहयोग से जीवंती ट्रस्ट के तत्वावधान में कुर्मांचल सेवा समिति द्वारा संचालित की जा रही इस परियोजना के अंतर्गत आज एक वृहद प्रशिक्षण कार्यषाला का आयोजन किया गया।

वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश पांडे द्वारा प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।
वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश पांडे द्वारा प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।

कलस्टर के मध्य में पड़ने वाले भेटा गांव में में क्षेत्र के 60 लाभार्थियों भागीदारी की जबकि डाबर के प्रधान वैज्ञानिक सुरेन्द्र भगत, प्रकाष पांडेय, मुख्य प्रशिक्षण हरीष जोषी, कुर्माचल सेवा समिति के अध्यक्ष उमेश बिष्ट संस्था के प्रशक्षक हीरा सिंह मेहता एवं उद्यान विभाग के सहायक विकास अधिकारी गणेष गौतम ने रिसोर्स व्यक्ति के रूप प्रतिभाग किया। इस अवसर पर समस्त समस्त काष्तकारों को 60 मधु बॉक्स वितरित किए जबकि इस महीने के अंत तक इतने ही अतिरिक्त बॉक्स वितरित किए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि डाबर इंडिया ने कुमाऊं में मधुमक्खीपालन विकास योजना हेतु चंपावत आधारित कुर्मांचल सेवा समिति का चयन किया है।  कुर्मांचल सेवा समिति संस्था विगत 25 वर्ष से ग्रामीण विकास में अग्रसर है। संस्था ने डाबर के कार्पोरेट सामाजिक दायित्व (सी.एस.आर.) हैड डॉ. पंकज रतूड़ी एवं टीम के साथ इस परियोजना के संचालन हेतु विगत एक वर्ष से वार्तालाप जारी रखा। जिसके परिणामस्वरूप डाबर ने संस्था को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में गंगासेरी कलस्टर में कार्य करने का दायित्व संस्था को दिया है। इसके उपरांत डाबर पूरे हिमालयी क्षेत्र में ‘हिमालयन शहद’ के ब्रांड नाम के साथ शहद उत्पादन को प्रोत्साहित करेगी।

डाबर के प्रधान वैज्ञानिक सुरेन्द्र भगत ने एक ओर डाबर इंडिया द्वारा सामुदायित विकास के लिए देषभर में चलाई जा रही परियोजना को पेष किया तो दूसरी ओर शहद उत्पादन को प्रोत्साहिक किए जाने के प्रयासों पर भी विस्तार से अपनी बात रखी। उन्होंने कि आरंभिक स्तर पर संचालित यह योजना सफल हो जाती है तो मधुमक्खीपालन को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित किया जाएगा और ‘हिमालयन शहद’ ब्रांड नाम के साथ बाजार में प्रस्तुत किया जाएगा। उन्होंने कहा कि भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में शहद और इसके उपादों की अत्यधिक मांग है, चूंकि हिमालयी क्षेत्र में उत्पादित शहद आर्गनिक होने के साथ अच्छी गुणवत्ता से युक्त है, जिसके चलते इसकी मांग भी बढ़ी है और दाम भी। इसलिए हिमालयी क्षेत्र में शहद उत्पादन की दिषा में डाबर इंडिया अपनी मजबूत पहल शुरू कर दी है।

वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश पांडे ने कहा कि संस्था ने क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों एवं मधुमक्खीपालन की संभावनाओं का अध्ययन करने के बाद शहद कलस्टर के रूप में गंगासेरी ग्राम पंचायतों के छह गांवों को चुना है। जिसके अंतर्गत क्षेत्र में लगभग 200 मौन बॉक्सों का वितरण किया जा रहा है। इसके साथ ही निरंतर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। संस्था द्वारा बाकायदा इस कलस्टर हेतु एक प्रषिक्षण को नियमित गांवों के भ्रमण कर मौनपालकों की समस्या के निदान हेतु तैनात किया है। काष्तकारों की समस्याओं के ग्राम स्तर पर ही समाधान देने के लिए एक मधु संसाधन केंद्र की स्थापना की गई है और शहद उत्पादन में उपयोग होने वाले उपकरणों को प्रत्येक गांव में वितरित किया जा रहा है। जिससे क्षेत्र में शहद उत्पादन के बेहतर होने की संभावनाएं बढ़ गई है।

मुख्य प्रशिक्षक हरीष जोषी ने जहां एक ओर मधुमक्खीपालन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि लाभार्थियों के सम्मुख रखी वहीं दूसरी ओर मौनपालन की परंपरागत व वैज्ञानिक विधियों को बारीकी के साथ साझा किया। उन्होंने मधुमक्खी के विकासक्रम पर विस्तृत जानकारी देने के साथ ही मधुमक्खियों के प्रकार, रानी, श्रमिक व नर मधुमक्खी कार्य, शहद उत्पादन की तरीके, मधुमक्खी का जीवनचक्र, बकछूट की स्थिति, मधुमक्खियों को पकड़ने के तरीके पर जानकारी दी। इसके साथ ही उन्होंने समस्त लाभार्थियों को तीन समूहों में बांटकर मधुबॉक्स को खोलने, आंतरिक स्थिति का निरीक्षण करने, शहद निकालने, शहद का शोधन और पैकिजिंग करने का प्रायोगिक कार्य लाभार्थियों के माध्यम से कराया। उन्होंने मधुमक्खीपालन में उपयोग होने वाले उपकरणों कार्यविधि पर भी विस्तृत चर्चा की।

संस्था के प्रशिक्षक हीरा सिंह मेहता ने कहा कि संस्था द्वारा पूर्व में स्थानीय पंचायत घर में दो दिवसीय प्रषिक्षण कार्यषाला का आयोजन किया, जिसमें 48 काष्तकारों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में काष्तकारों द्वारा बताया गया कि उन्हें अपने रोजमर्रा के अन्य कार्यक्रमों से लगातार तीन-चार दिन का समय निकाल पाना कठिन हो जाता है लिहाजा प्रषिक्षण की नई रणनीति तैयौर की जाय। जिस कारण संस्था अब गांव स्तर पर ही हर सप्ताह एक दिन कि लिए प्रषिक्षण आयोजित कर रही है। इस प्रक्रिया से प्रषिक्षण का उद्देष्य भी पूरा हो रहा है और ग्रामीणों भी अपना समय दे पा रहे हैं।

कार्यक्रम में उद्यान विभाग के सहायक विकास अधिकारी गणेष गौतम ने मधुमक्खीपालन पर सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं की जानकारी काष्तकारों को दी। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि चूंकि कृषि औद्यानिकी एवं मधुमक्खीपालन एक दूसरे के पूरक हैं, इसलिए काष्तकारों को औद्यानिक गतिविधियों को भी साथ-साथ संचालित करना चाहिए, जिनके लिए राज्य सरकार किसानों की मदद कर रही है। इस अवसर पर स्थानीय संयोजक नंदन पांडेय ने पूरे कलस्टर की जैवविविधता, जनांकिकी और समस्याओं को सामने रखा। इसके साथ ही ग्राम प्रधान विमला देवी ने इस कार्यक्रम की भरपूर प्रसंषा की और मधुमक्खीपानल के साथ की औद्यानिक विकास कार्यक्रमों के संचालन के लिए डाबर इंडिया से अनुरोध किया।

अंत में परियोजना संचालक संस्था कुर्माचल सेवा समिति के अध्यक्ष ने सभी का आभार व्यक्त किया और कहा कि संस्था पूरे मनोयोग के साथ गंगासेरी मधु कलस्टर को विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है और डाबर इंडिया के साथ ही अन्य सरकारी संस्थाओं के सहयोग से ग्रामीण विकास व संसाधन प्रबंधन की योजना पर कार्य कर रही है। इसके साथ ही उपस्थित समस्त प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र और मधु गृह वितरित किए गए। कार्यक्रम को लेकर समस्त प्रतिभागियों ने सराहना करते हुए भविष्य में भी इस तरह के आयोजन किए जाने की मांग की।

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