चैत्र मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को गुडी पडवा या वर्ष प्रतिपदा या उगादी कहा जाता है
मांगलिक प्रतिपदा

इस दिन हिंदू नव वर्ष का आरंभ होता है। इस बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए डा. बसुंधरा उपाध्याय ने बताया कि गुड़ी का अर्थ है विजय पताका आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में उगादी और महाराष्ट्र में यह पर्व गुड़ी पड़वा के रुप में मनाया जाता है इसी दिन से चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ होता है भारतीय नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही मनाया जाता है और इसी दिन से ग्रहों वारों, मासोंऔर संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोलशास्त्रीय जनगणना के अनुसार माना जाता है आज भी जनमानस से जुड़ी यह शास्त्र सम्मत कालगणना व्यावहारिकता की कसौटी पर खरी उतरती है।
यह हमारे राष्ट्र का गौरवशाली प्रतीक माना जाता है । इसे सभी मानते हैं यह किसी देवी देवता या महान पुरुष के नाम पर नहीं है यह ईस्वी और हिजरी सन की तरह किसी जाति विशेष का नहीं है ।भारतीय परंपरा सदेव से गौरवशाली परंपरा रही है यह विशुद्ध अर्थों में प्रकृति के और खगोल शास्त्र पर आधारित है। भारतीय काल गणना का आधार पूर्ण रूप से पंथ निरपेक्ष है। प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है । व्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र मास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की यह भारतीयों की मान्यता है। इसलिए हमें चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही नव वर्ष का प्रारंभ मानते हैं इस मास में प्रकृति नया आवरण धारण करती है । नवीन संरचना के लिए वह शक्ति धारण करती है। जड़. चेतन, पशु -पक्षी, मानव .मन, हर कोई हर्षित हो जाता है और सबके मन उल्लास से मुदित हो जाते हैं ।
यह समय दो ऋतुओं के संधि काल का होता है । प्रकृति नया रूप धारण कर नवसंरचना के लिए ऊर्जस्वित हो जाती है।मानव मन भी प्रमाद और आलस्य को त्याग कर सचेतन हो जाते हैं। हर शाख पर नये नये फूल पत्ते लग जाते हैं आम पर बौर आ जाता है। प्रकृति की सुंदरता सबको मोहित करती है और प्रकृति नूतनता का सृजन करती है । प्रतिपदा ही सृष्टि का प्रारंभ का दिन भी माना जाता है ।यह गणना वैज्ञानिक व शास्त्र सम्मत है। इसकी कालगणना बड़ी प्राचीन है भारत की संस्कृति महान है। जहां नववर्ष के आगमन पर घर.घर में पूजा.पाठ व्रत यज्ञ आदि का आयोजन होता है ।
सबके मन सात्विक होते हैं यही कारण है कि हमारी संस्कृति पर हम ही नहीं बल्कि पाश्चात्य धर्म को मानने वाले भी गर्व करते हैं। किसी अन्य राष्ट्र के नव वर्ष की तुलना में हमारा नव वर्ष राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है क्योंकि हमारी संस्कृति के अनुसार हमारा नव वर्ष सृष्टि जन्य है, नक्षत्रीय है ईश्वरीय है क्योंकि सभी मांगलिक कार्य प्रतिपदा से ही प्रारंभ होते हैं। हमें अपने धर्म का पालन करना चाहिए आने वाली संतानों को इसकी पूर्ण जानकारी एवं इसके गुणों के विषय में हमें बताना चाहिए ताकि वह जाने की हमें अपना नव वर्ष कैसे मनाना चाहिए और इस पावन पर्व को बड़ी धूमधाम के साथ अपने घरों में पूजा.पाठ के साथ ही मनाएं। हमारे रीति .रिवाज ही हमारी पहचान है तो आइए मिलकर अपने इस राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक प्रतिपदा अर्थात नव वर्ष की मंगलवेला का अभिनन्दन करें।
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