पिथौरागढ़ : प्रकाश में आए 350 सिजोफ्रेनिया के मामले
लक्षण : दूसरों पर संदेह, खुद से बातचीत, अकेले रहने और आक्रामक हो जाना, आवाजें सुनायी पड़ना

मानसिक रोगों में गंभीर माने जाने वाली सिजोफ्रेनिया बीमारी से ग्रसित लोग अब उपचार के लिए आगे आने लगे हैं। पिथौरागढ़ जिले में एक वर्ष के अंतर्गत 350 से अधिक लोग इस बीमारी से ग्रसित पाये गये हैं। उपचार के बाद इनमें से कुछ लोग अब पूरी तरह स्वस्थ हैं तो कुछ का उपचार जारी है। केंद्र सरकार ने मानसिक रोगियों की पहचान के लिए देश में नमन प्रोजेक्ट की शुरूआत की है। जिसके पहले चरण में यह प्रोजेक्ट कनार्टक राज्य के बेलूर और उत्तराखंड के मुनस्यारी विकास खंड में संचालित किया जा रहा है। निम्हांस बेंगलुरू और ऋषिकेश एम्स उत्तराखंड के सहयोग से संचालित इस प्रोजेक्ट में घर-घर जाकर लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की जांच कर उन्हें उपचार और पुनर्वासित किया जाना है। पहले चरण में सर्वे का कार्य चल रहा है।
जनपद पिथौरागढ़ में परियोजना के नोडल अधिकारी वरिष्ठ मानसिक रोग चिकित्सक डा. ललित भट्ट ने बताया कि जनपद में पिछले वर्ष सिजोफ्रेनिया के 350 मामले सामने आये हैं। इसके अतिरिक्त सामान्य मानसिक बीमारों की संख्या अलग है। बताया कि पिथौरागढ़ जनपद में मानसिक रोगों के उपचार की सुविधा प्राप्त होने व जागरूकता कार्यक्रमों के आयोजन के उपरांत अब लोग उपचार के लिए आगे आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि सिजोफ्रेनिया से ग्रसित व्यक्ति में दूसरों पर संदेह करने, खुद से बातचीत करने, अकेले रहने कभी कभी आक्रामक हो जाना, आवाजें सुनायी पड़ना उसे लगता है कि लोग उसके विषय में बात कर रहे हैं,साथ ही साथ व्यक्ति बिना किसी उद्देश्य के इधर-उधर घूमता रहता है। व्यक्ति सुख और दुःख की अनुभूति नहीं कर पाता है। अक्सर यह भी देखा गया समुदाय में मनोविदलता बीमारी से सम्बन्धित जानकारी के अभाव में लोग इस बीमारी को जादू टोना समझने लगते है और झाड़ फूक के माध्यम से उपचार कराना शुरु कर देते है।
परिणामस्वरुप बीमारी की गम्भीरता बढ़ते जाती है व्यक्ति की जीवन की गुणवत्ता जैसे उसकी दैनिक दिनचर्या के साथ ही साथ उसका समाजिक जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है। विडम्बना की बात तो यह है कि लोग इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को पागल कहते हुये उसका तिरस्कार करने लगते है। व्यक्ति के परिवार पर व्यक्ति के देख-रेख का भार के साथ ही समाजिक और आर्थिक भार पड़ने लगता है।
इसी क्रम में आम जन मानस में मनोविदलता (सीजोफ्रेनिया) के विषय में जागरुकता को फैलाने हेतु 24 जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। अब तक हुए शोधों से इसका कारण मानसिक तनाव और आनुवंशिकता को माना जाता है।
उन्होंने बताया कि पंजीकृत हुए लोगों में से कई का सफल उपचार हो चुका है, कुछ लोगों का अभी उपचार जारी है। आम जन मानस में मनोविदलता (सीजोफ्रेनिया) के विषय पर जागरूक करने के लिए 24 मई को विश्व सीजोफ्रेनिया दिवस मनाया जाता है। इस गम्भीर बीमारी का मूलभूत कारण बता पाना आसान नहीं है परन्तु संभवतः इसमे तनाव और अनुवांशिकता का पात्र हो सकता है। वास्तविकता तो यह है इस बीमारी का पूर्ण उपचार मनोचिकित्सा द्वारा सम्भव है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आधार पर यह पाया गया देश में मनोविदलता से ग्रसित व्यक्तियो 0.42 प्रतिशत है तथा 80 प्रतिशत लोगो को मनोचिकित्सकीय उपचार नहीं मिल पा रहा है। इसी क्रम में उपचार की कमी को पूरा करने के लिये राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तं़ित्रका विज्ञान संस्थान, बंेगलुरु और एम्स ऋषिकेश के मनोरोग विभाग ने कर्नाटक तथा उत्तराखण्ड सरकार के सहयोग से तीन वर्षीय ग्रामीण मानसिक स्वास्थय कार्यक्रम, नमन परियोजना की शुरुआत की गई है।
वर्तमान समय में यह परियोजना पायलट परियोजना के रुप में दो तालुको क्रमशः बेलुर तालुक, हासन जिला, कर्नाटक राज्य और मुनस्यारी तालुक, पिथौरागढ़ जिला, उत्तराखण्ड राज्य मं े क्रियान्वित की जा रही है। इस परियोजना के तहत मानसिक स्वास्थ्य सवंर्द्वन, रोकथाम और, उपयार और पुर्नवास से सम्बन्धित सेवाएं प्रदान की जायेगी। तालुको में परियोजना क्रियान्वयन के सम्बन्ध में तीन वर्ष हेतु परियोजना के अधीन कर्मचारियो की नियुक्ति की जा रही है जिनके माध्यम से सम्पूर्ण तालुक की जनसंख्या का सर्वेक्षण करते हुये उन तक मानसिक स्वास्थय सुविधाओ को पहुॅचाना ही कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है। कार्यक्रम की सफलता के परिणाम के आधार पर उपरोक्त कार्यक्रम को देश भर में समस्त तालुको में क्रियान्वित करने की योजना है, जिससे मानसिक स्वास्थय सुविधाओ को सशक्त बनाया जा सके।
उपरोक्त तीन वर्षीय कार्यक्रम को क्रियान्वित करने के लिए वित्तीय सहायता आश्रया हस्ता ट्रस्ट, बंेगलुरु, के माध्यम दी जा रही है। कार्यक्रम में मोहित शुक्ला, मनोसमाजिक कार्यकर्ता, नमन परियोजना, निम्हान्स बेंगलुरु। डॉ0 नवीन कुमार सी, आचार्य, प्रधान अन्वेषक, नमन परियोजना, निम्हान्स, बंेगलुरु। डॉ0 विक्रम सिंह रावत, अपर आचार्य, सह अन्वेषक, नमन परियोजना, एम्स, ऋषिकेश। डॉ0 ललित भट्ट, मानसिक स्वास्थय नोडल, पिथौरागढ़, द्वारा सहयोग दिया जा रहा है।
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