पिथौरागढ़ : तराई की राह : भेड़पालकों का छः माह का सफर हुआ शुरू
साढ़े तीन सौ भेड़-बकरियों व घोड़ों के लाव लश्कर के साथ भेड़पालक रवाना

अर्जुन सिंह रावत : प्राचीन काल में मानव साल भर में दो बार देशाटन किया करते थे। गर्मी के मौसम में ठंडे स्थानों में और सर्दी का मौसम आने पर गर्म घाटियों में प्रवास पर जाया करते थे। पक्षियों में भी प्रवास पर जाने की प्रथा अभी भी चली आई हैं। इधर नवंबर माह के प्रथम सप्ताह में हजारों किमी की यात्रा करके जहां थल के रामगंगा नदी में ग्रेट कार्मोरेंट पक्षी प्रवास पर पहुंच चुके हैं।
आज भले ही मानव ने अपनी दिनचर्या बदल दी है, लेकिन उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले भेड़ बकरियां और भेड़पालक आज भी प्रवास पर तराई क्षेत्रों में जा रहे हैं। आज ही तड़के सुबह थल पहुंचे भेड़ पालक महेंद्र सिंह बृजवाल अपने साढ़े तीन सौ भेड़ बकरियां, घोड़ों के लाव लश्कर के साथ मुनस्यारी के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ठंड से बचने के लिए, गिनी बैंड, चिफलवा, थल, गार्जिला, लिकतड़, बलगड़ी, बेड़ीनाग, अल्मोड़ा, गरमपानी, भीमताल होते हुए पंद्रह दिनों की देशाटन कर प्रवास पर तराई भावर के हल्द्वानी पहुंचेंगे।
उन्होंने बताया कि जाड़े के मौसम में उच्च हिमालयी क्षेत्रों के बुग्यालों में बर्फबारी और अत्यधिक ठंड से बचने और चारे की समस्या के कारण वे हर साल जाड़ों के छः माह गर्म घाटियों वाले क्षेत्रों में प्रवास करते हैं। गर्मी शुरू होते ही फिर वे छः माह उच्च हिमालयी क्षेत्रों की ओर प्रवास पर आ जाते जाएंगे।ये भेड़पालक अब अप्रैल के पहले सप्ताह तराई से आकर फिर उच्च हिमालयी क्षेत्रों के बुग्यालों में प्रवास पर आ जाएंगे।
भेड़पालक महेंद्र सिंह बृजवाल ने बताया कि भेड़पालकों की ज़िंदगी बहुत कठिन हैं। एक दिन में ये पंद्रह किमी पैदल चलते हैं और खुले आसमान के नीचे उन्हें रात बितानी पड़ती हैं। बकरियां के चोरी होने और गुलदार के भय से भी पूरी रात भर चौकन्ना रहना होता हैं। बकरियां को चरने के लिए सुबह से शाम तक बहुत मशक्कत करनी पड़ती है।
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